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Surah Yusuf Ayah #32 Translated in Hindi

قَالَتْ فَذَٰلِكُنَّ الَّذِي لُمْتُنَّنِي فِيهِ ۖ وَلَقَدْ رَاوَدْتُهُ عَنْ نَفْسِهِ فَاسْتَعْصَمَ ۖ وَلَئِنْ لَمْ يَفْعَلْ مَا آمُرُهُ لَيُسْجَنَنَّ وَلَيَكُونًا مِنَ الصَّاغِرِينَ
(तब ज़ुलेख़ा उन औरतों से) बोली कि बस ये वही तो है जिसकी बदौलत तुम सब मुझे मलामत (बुरा भला) करती थीं और हाँ बेशक मैं उससे अपना मतलब हासिल करने की खुद उससे आरज़ू मन्द थी मगर ये बचा रहा और जिस काम का मैं हुक्म देती हूँ अगर ये न करेगा तो ज़रुर क़ैद भी किया जाएगा और ज़लील भी होगा (ये सब बातें यूसुफ ने मेरी बारगाह में) अर्ज़ की

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